20 मिनट पहलेलेखक: ईफत कुरैशी
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“उसने एक टूटी हुई सारंगी, एक टूटे हुए गीत, एक टूटे हुए दिल के साथ अपनी जिंदगी खत्म कर दी, लेकिन कोई अफसोस नहीं।”
मुंबई के रहमताबाद के कब्रिस्तान में जब आज से ठीक 52 साल पहले 31 मार्च 1972 को मीना कुमारी को दफनाया गया, तो पति ने मौत से पहले उनकी आखिरी गुजारिश मानकर ये पंक्तियां भी कब्र के पत्थर पर लिखवा दीं। शायद यही मीना कुमारी की जिंदगी का सार था।
कहा जाता है कि मीना कुमारी की जिंदगी में इस कदर दर्द था कि उन्हें पर्दे पर रोने के लिए ग्लिसरीन की जरूरत नहीं पड़ी। मीना कुमारी को ट्रैजडी क्वीन कहा जाता था। इनके पैदा होने के चंद घंटों बाद ही पिता ने नफरत के सैलाब में नन्ही मासूम बच्ची को अनाथाश्रम के हवाले कर दिया। वापस लाया गया, तो वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि मां अस्पताल में बेटी का चेहरा देखने के लिए बिलख रही थी।
मीना 4 साल की थीं जब उन्हें कमाई की मशीन बना दिया गया। होश संभाला, तो पहले पिता की पाबंदियों से सामना हुआ और फिर पति कमाल अमरोही की मारपीट से।
पाकीजा, साहिब बीवी और गुलाम, बैजू बावरा जैसी दर्जनों फिल्मों में नजर आईं मीना कुमारी का वो रुतबा था कि अगर उनका बाल भी टूटकर गिर जाए, तो चाहने वाले उसे भी सहेज कर उसकी ताबीज बनवा लिया करते थे, लेकिन एक समय ऐसा भी रहा कि जब पिता ने उन्हें घर से निकाला तो पति कमाल अमरोही ने अपनाने के लिए कई शर्तों की फेहरिस्त थमा थी।
फिल्मी चकाचौंध में रहने वाली मीना कुमारी की जिंदगी इस कदर स्याह थी कि उन्होंने शराब को ही सुकून का जरिया बना लिया। शराब ही उनकी मौत का कारण बनी।
आज मीना कुमारी की 52वीं डेथ एनिवर्सरी पर जानिए उनकी ट्रैजडी क्वीन बनने की कहानी-
मीना कुमारी को पैदा होते ही अनाथाश्रम छोड़ आए थे पिता अली बख्श
1 अगस्त 1933 को मीना कुमारी उर्फ माहजबीन बानो का जन्म मुंबई के दादर इलाके में रहने वाले एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। पिता अली बख्श एक बेटे की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन जब नर्स ने उन्हें कहा कि आपके घर बेटी का जन्म हुआ है, तो वो बर्दाश्त नहीं कर सके। उनके लिए ये खबर इतनी नागवार थी कि वो चंद घंटों की बेटी को तुरंत अनाथाश्रम छोड़ आए। जब मां को होश आया तो वो बेटी को देखने के लिए बिलखने लगीं। पत्नी रो-रोकर हलकान हुई तो अली बख्श को मजबूरन मीना कुमारी को वापस लाना पड़ा।
पिता अली बख्श और छोटी बहन मधु के साथ मीना कुमारी।
4 साल की मीना कुमारी को पहली फिल्म में 25 रुपए फीस मिली
मीना के पिता अली बख्श एक पारसी थिएटर आर्टिस्ट थे। जब उनकी कमाई कम पड़ने लगी, तो वो 4 साल की माहजबीन (मीना कुमारी) को साथ ले जाने लगे। किस्मत ने साथ दिया और मीना कुमारी को डायरेक्टर विजय भट्ट की फिल्म लेदर फेस (1939) में बाल कलाकार का काम मिल गया। पहली तनख्वाह 25 रुपए मिली और फिर सिलसिला चल पड़ा।
बेबी मीना के नाम से उन्होंने कई फिल्में कर डालीं और घर के हालात संभलने लगे। खेलने-कूदने की उम्र में मीना कुमारी अपने परिवार की कमाई का इकलौता जरिया बन गईं।
अधूरी कहानी (1939), पूजा (1940), एक ही भूल (1940) में काम करने वालीं मीना कुमारी को बेबी मीना नाम डायरेक्टर विजय भट्ट ने दिया था।
मीना 13 साल की थीं, जब उन्हें बतौर हीरोइन फिल्म बच्चों का खेल (1946) में काम मिला। मीना हीरोइन बनकर खुश थीं, लेकिन ये खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी। 13 महीने ही बीते थे कि उनकी मां गुजर गईं।
मां के निधन से मीना सदमे में थीं, लेकिन मजबूरी ऐसी थी कि उन्हें शोक मनाने का समय भी नहीं मिला। साल बदलते गए और मीना कुमारी की एक के बाद एक फिल्में रिलीज होने लगीं। सराय, पिया घर आजा, बिछड़े बालम जैसी फिल्में मीना की तरक्की की सीढ़ियां बनने लगीं और आखिरकार 1952 की फिल्म बैजू बावरा ने उन्हें हिंदी सिनेमा की आला मुकाम अभिनेत्री का दर्जा दिला दिया।
बतौर हीरोइन मीना कुमारी की पहली फिल्म बच्चों का खेल था। तब से ही उन्हें फिल्मों में मीना कुमारी कहा जाने लगा।
डायरेक्टर के गलत इरादों पर शोर मचाया, तो पड़े 31 थप्पड़
मीना कुमारी वो खूबसूरत अभिनेत्री थीं कि उन्हें देखने के लिए सड़कों पर मजमा लगा करता था। उनकी खूबसूरती पर कई नामी-गिरामी लोगों की भी नजरें रहीं, या कहें तो गलत नजरें। एक दिन मीना एक मशहूर डायरेक्टर की फिल्म की शूटिंग पर पहुंची थीं।
शूटिंग का पहला ही दिन था कि डायरेक्टर ने सबके सामने कह दिया कि वो मीना के साथ अकेले लंच करेंगे। खाने का इंतजाम मीना कुमारी के मेकअप रूम में करवाया गया, जहां किसी को आने की इजाजत नहीं थी।
लोग उस डायरेक्टर का इरादा भांप गए, लेकिन कुछ कर नहीं सके। कमरा बंद हुआ और खाने का सिलसिला शुरू हुआ। चंद मिनट भी नहीं बीते कि डायरेक्टर ने अपने पैर से मीना का पैर दबाना शुरू कर दिया। मीना सहम गईं, लेकिन जिस डायरेक्टर की फिल्म कर रही थीं उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकीं।
डायरेक्टर ने भी बस नहीं किया और मीना का हाथ पकड़कर चूमना शुरू कर दिया। मीना के सब्र की इंतिहा हुई और उन्होंने शोर मचाकर लोगों को बुलाना शुरू कर दिया। भीड़ इकट्ठा हुई और मीना ने सबके सामने डायरेक्टर को लताड़ लगाकर धुलाई करनी शुरू कर दी।
इज्जत बचाने के लिए डायरेक्टर ने कहा कि उसके इरादे नेक हैं, वो तो बस फिल्म का सीन समझा रहा था। सेट पर मौजूद लोग सब सच जानते हुए भी खामोश रहे। अगले दिन सबको धमकी दी गई कि इसका जिक्र किया गया, तो इंडस्ट्री में रहना मुहाल कर दिया जाएगा।
मीना कुमारी वो फिल्म छोड़ना चाहती थीं, लेकिन उन्हें कॉन्ट्रैक्ट का हवाला देकर रोक लिया गया। चंद दिन बीते और हमेशा की तरह बात रफा-दफा हो गई। पूरे सेट पर सिर्फ दो ही लोग थे, जिन्हें ये बात याद थी, पहली मीना जो इस बदसलूकी को भुला नहीं सकीं और दूसरा वो डायरेक्टर, जो बेइज्जती का बदला लेने पर उतारू था।
एक दिन डायरेक्टर ने मौका मिलते ही स्क्रिप्ट में बदलाव करवा दिए। अचानक फिल्म में एक ऐसा सीन डाला गया, जिसमें हीरो मीना को जोरदार थप्पड़ मारता है। इस सीन की शूटिंग शुरू होने से पहले डायरेक्टर ने भारी भरकम हाथ वाले हीरो से कहा कि देखो कैमरा चेहरे के बहुत नजदीक है। जोरदार थप्पड़ मारना, वर्ना कैमरे में नकलीपन पकड़ा जाएगा।
हीरो ने वैसा ही किया। पहला थप्पड़ पड़ते ही मीना कराह उठीं, लेकिन डायरेक्टर ने दया नहीं की। उसने बदला लेने के लिए एक के बाद एक करीब 31 थप्पड़ पड़वाए।
सेट पर मौजूद हर कोई डायरेक्टर की मंशा भांप गया, लेकिन कुछ कह नहीं सका। एक्टर अनवर हुसैन उस रोज सेट पर मौजूद थे। उन्होंने ये वाकया बलराज साहनी से साझा किया और उन्होंने इसे ऑटोबायोग्राफी के जरिए दुनिया तक। हालांकि उन्होंने उस किस्से में कहीं उस डायरेक्टर का जिक्र नहीं किया।
15 साल बड़े डायरेक्टर से हुई मोहब्बत, पिता करते थे जासूसी
जब मीना कुमारी 5 साल की थीं, तब कमाल अमरोही उन्हें अपनी फिल्म में कास्ट करना चाहते थे, लेकिन तब बात नहीं बनी थी। जब मीना स्टार बनीं, तो कमाल अमरोही ने 1951 में उन्हें फिल्म अनारकली में कास्ट किया। इस फिल्म की शूटिंग के बीच 21 मई 1951 को महाबलेश्वर से बॉम्बे आते हुए मीना कुमारी का रोड एक्सीडेंट हो गया।
उन्हें पुणे के ससून अस्पताल में भर्ती कराया गया। कमाल अमरोही रोज उनके लिए फूल लेकर अस्पताल पहुंचते और घंटों उनसे बातें करते। साथ समय बिताते हुए मीना कुमारी 15 साल बड़े कमाल अमरोही को चाहने लगीं, जबकि वो पहले ही दो शादियां कर चुके थे।
लंबे इलाज के बावजूद उनके दाहिने हाथ की उंगली बेजान हो गई। मुड़ी हुई उंगली के चलते मीना हमेशा उसे छिपाकर रखती थीं। यही वजह थी कि वो फिल्मों में भी इस तरह दुपट्टे या पल्लू का इस्तेमाल करती थीं, जिससे उंगली छिपी रहे।
14 फरवरी 1952 को मीना कुमारी ने कमाल अमरोही से सीक्रेट शादी की थी।
जब मीना के पिता को दोनों की नजदीकियों की खबर लगी, तो वो मीना पर पहरा रखने लगे। कमाल को मजबूरन अस्पताल आना छोड़ना पड़ा, लेकिन फिर दोनों ने खतों के जरिए बातों का सिलसिला जारी रखा। फिल्मी गलियारों में भी दोनों की नजदीकियों की चर्चा थी, ऐसे में पिता मीना पर कमाल की फिल्म अनारकली छोड़ने का दबाव बनाने लगे।
मीना को मजबूरन फिल्म छोड़नी पड़ी, लेकिन वो कमाल को छोड़ने के लिए राजी नहीं थीं। पिता ने सख्ती कर उनका घर से निकलना बंद करवा दिया। मीना सिर्फ फिजियोथेरेपी के लिए घर से निकलती थीं, वो भी पिता या बहन मधु के साथ।
रोज सुबह पिता उन्हें 8 बजे क्लिनिक छोड़ते थे और 10 बजे लेने आते थे। पाबंदियां बढ़ीं तो प्यार और परवान चढ़ गया। मीना जानती थीं कि पिता कभी उनकी और कमाल की शादी के लिए नही मानेंगे।
वो तारीख 14 फरवरी 1952 थी, जब पिता के जाते ही मीना, कमाल के साथ निकल गईं और 2 घंटे में शादी कर वापस क्लिनिक लौट आईं। इस सीक्रेट शादी के बाद भी वो पिता के साथ ही रहती थीं। एक दिन जब उनके पिता को उनकी शादी की खबर मिली तो वो मीना पर तलाक का दबाव बनाने लगे। आए दिन मीना के घर में हंगामा होता था, लेकिन वो कभी तलाक के लिए नहीं मानीं।
पिता ने घर से निकाला, कमाल ने भी साथ रखने के लिए शर्तें रखीं
कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को फिल्म दायरा ऑफर की थी, लेकिन उनके पिता अली बख्श नहीं चाहते थे वो ये फिल्म करें। एक दिन मीना पिता के खिलाफ जाकर शूटिंग करने पहुंच गईं। जब शूटिंग के बाद घर लौटीं, तो पिता ने दरवाजा ही नहीं खोला। मीना कई घंटों तक घर के बाहर खड़ी रहीं। फिर कमाल अमरोही के पास चली गईं।
जैसे ही मीना पहुंचीं, तो कमाल ने साफ कह दिया कि अगर साथ रहना है तो तमाम शर्तें माननी पड़ेंगीं। पहली शर्त किसी दूसरे डायरेक्टर की फिल्म नहीं करना। कोई लड़का घर छोड़ने नहीं आना चाहिए। शाम 6 बजे से पहले घर लौटना होगा। रिवीलिंग कपड़े नहीं पहनना होगा और कोई पुरुष उनके मेकअप रूम के अंदर नहीं आना चाहिए।
हालातों से हारकर मीना ने सारी शर्तें मान लीं और कमाल अमरोही के साथ रहने लगीं। शादी के 8 महीने तक मीना ने सारी शर्तें मानीं, लेकिन फिर उन्होंने विरोध किया। घर में रोज झगड़े होते जिनका अंत मारपीट से होता।
2 रुपए के लिए हुआ था पति से पहला झगड़ा
शादी के बाद कमाल अमरोही ही मीना की कमाई का हिसाब रखते थे। दोनों का पहला झगड़ा 2 रुपए के लिए हुआ था। जब मीना ने अपनी मालिशवाली औरत के 2 रुपए बढ़ाने को कहा तो कमाल ने ये कहकर इनकार कर दिया कि तुम्हें मालिश की जरूरत नहीं है। दोनों का झगड़ा इतना बढ़ गया कि मालिश वाली को नौकरी से निकाल दिया गया। ये किस्सा अन्नू कपूर ने शो सुहाना सफर में सुनाया था।
नरगिस थीं मीना कुमारी के साथ हुई मारपीट की गवाह
फिल्म मैं चुप रहूंगी की शूटिंग के दौरान नरगिस और मीना कुमारी का कमरा आस-पास था। एक दिन नरगिस ने मीना के कमरों से चीखने की आवाजें सुनीं। थोड़ी देर बाद कमाल कमरे से निकलते दिखे। अगले दिन मीना कुमारी का चेहरा बेहाल था।
इसी तरह फिल्म साहेब बीवी और गुलाम के सेट पर मीना कुमारी को देरी हो गई। शर्त के अनुसार उन्हें शाम को 6 बजे घर पहुंचना था, लेकिन जब ऐसा नहीं हो सका, तो कमाल से डरकर वो सेट पर ही रोने लगीं।
फिल्म मैं चुप रहूंगी का पोस्टर। फिल्म में मीना कुमारी, नरगिस और सुनील दत्त लीड रोल में थे।
मीना का पति कहलाने पर नाराज हुए थे कमाल
एक कार्यक्रम के दौरान जब सोहराब मोदी ने मुंबई के गवर्नर से कमाल और मीना का परिचय करवाया तो वो खूब गुस्सा हुए। दरअसल सोहराब ने कहा था, ये मीना कुमारी हैं और ये उनके पति कमाल। कमाल ने तुरंत टोका और कहा, जी नहीं, मैं कमाल अमरोही हूं और ये मेरी पत्नी मीना। गुस्से में कमाल कार्यक्रम छोड़कर तुरंत निकल गए और मीना को सबके सामने शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।
अवॉर्ड सेरेमनी में मीना का पर्स छोड़ा, कहा- आज पर्स उठाता, कल चप्पल
1955 की फिल्म परिणीता के लिए मीना कुमारी को बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। मीना अवॉर्ड फंक्शन में कमाल के साथ बैठी थीं। जब अवॉर्ड लेने वो स्टेज पर गईं तो पर्स कुर्सी पर ही छूट गया। घर आईं तो मीना को पता चला कि पर्स वहीं छूट गया। कुछ समय बाद एक्ट्रेस निम्मी, मीना का पर्स लौटाने आईं। जब मीना ने कमाल से पूछा कि क्या आपको पर्स नहीं दिखा? तो जवाब मिला- दिखा था, लेकिन मैंने उठाया नहीं। आज तुम्हारा पर्स उठाता, कल चप्पल।
पति ने करवाई जासूसी, अपने असिस्टेंट से सरेआम पड़वाया था थप्पड़
शक्की मिजाज कमाल अमरोही, मीना कुमारी पर अपने असिस्टेंट बकर अली से नजर रखवाते थे। एक दिन जब असिस्टेंट बकर अली ने देखा कि गुलजार, मीना के मेकअप रूम में गए तो उन्होंने सरेआम मीना को थप्पड़ जड़ दिया। इस भारी बेइज्जती के बाद जब मीना ने शिकायत करने पति को कॉल किया तो भी उन्हें ही बातें सुनाई गईं।
असिस्टेंट के थप्पड़ से बुरी तरह टूट चुकीं मीना कुमारी ने तुरंत ही पति कमाल का घर छोड़ दिया और बहन के साथ रहने लगीं। 1962 में दोनों ने तलाक ले लिया। मीना कुमारी डिप्रेशन में चली गईं, उन्हें क्रोनिक इन्सोम्निया (नींद न आने की बीमारी) हो गया। जब डॉक्टर के पास गईं तो डॉक्टर सईद तिमुर्जना ने उन्हें सलाह दी कि रोजाना सोने से पहले एक ढक्कन ब्रांडी पिएं। कब वो एक ढक्कन ब्रांडी कई ग्लासों में तब्दील हो गई, किसी को नहीं पता।
तलाक से रुक गई आइकॉनिक फिल्म पाकीजा
कमाल-मीना ने 1964 में तलाक ले लिया। 1954 में फिल्म आजाद की शूटिंग के दौरान कमाल ने मीना के सामने पाकीजा बनाने का प्रस्ताव रखा था। जिस पर कमाल अमरोही ने काम शुरू कर दिया था, लेकिन जैसे ही दोनों का तलाक हुआ तो पाकीजा फिल्म रुक गई।
फिल्म पाकीजा की एक झलक।
कम उम्र में जानलेवा बीमारी और पाकीजा
लगातार शराब का सेवन करते हुए मीना कुमारी लगातार बीमार रहने लगीं। 1968 में मीना कुमारी को लिवर सिरोसिस का पता चला। जून 1968 में ही मीना इलाज के लिए लंदन और स्विट्जरलैंड गईं। एक महीने बाद सितंबर में वो रिकवर होकर लौटीं जरूर, लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं हुईं। मीना को बताया जा चुका था कि उनके पास ज्यादा दिन नहीं हैं।
लौटते ही मीना ने पहली बार कार्टर रोड, बांद्रा की लैंडमार्क बिल्डिंग की 11वीं मंजिल पर अपार्टमेंट खरीदा। मीना कुमारी ने सालों पहले 1956 में पति कमाल से वादा किया था कि उनकी ड्रीम फिल्म पाकीजा में वही हीरोइन बनेंगी।
बीमारी और तलाक के बावजूद मीना ने वो वादा निभाया और पाकीजा की शूटिंग पूरी की। शूटिंग के दौरान कई बार उनकी तबीयत इतनी बिगड़ी कि उन्हें सेट से ही अस्पताल ले जाया गया। कई बार तो मीना की जगह बॉडी डबल को शूट पूरा करना पड़ा।
डेटॉल की बोतल में शराब छिपाकर रखती थीं मीना कुमारी
कमाल अमरोही जानते थे कि शराब की लत से मीना की हालत बिगड़ती जा रही है, ऐसे में उन्होंने मीना को खूब समझाया। मीना ने वादा किया कि वो शराब नहीं पिएंगी। एक दिन जब कमाल अमरोही उनके घर पहुंचे तो देखा कि बाथरूम में रखी डेटॉल की बोतल में शराब भरी हुई है। मीना रोज चोरी-छिपे शराब पीती थीं।
मुमताज ने फीस नहीं ली, तो उनके नाम किया बंगला
एक्ट्रेस मुमताज ने मीना कुमारी के कहने पर फिल्म गोमती के किनारे में काम किया था। वैसे तो फीस 3 लाख रुपए बनती थी, लेकिन मुमताज ने फीस नहीं मांगी। जब आखिरी दिनों में मीना बहुत बीमार रहने लगीं तो उन्होंने मुमताज को घर बुलाया। उन्होंने अपने सामने चंद पेपर तैयार करवाए और मुमताज को सौंप दिए। पेपर देखकर मुमताज हैरान थीं, क्योंकि मीना ने अपना कार्टर रोड स्थित बंगला उनके नाम कर दिया था।
फिल्म साहिब बीवी और गुलाम (1962) का एक सीन।
पाकीजा के प्रीमियर में कमाल अमरोही के बाजू में जाकर बैठी थीं मीना
3 फरवरी 1972 को पाकीजा फिल्म का प्रीमियर, मुंबई के मराठा मंदिर थिएटर में हुआ। मीना, कमाल के साथ ही पहुंचीं और उनके ठीक बाजू वाली कुर्सी पर बैठीं। फिल्म देखकर मीना ने कहा, मैं मान गई हूं कि मेरे पति एक मंझे हुए कलाकार हैं। इसके बाद 4 फरवरी 1972 को पाकीजा फिल्म रिलीज हुई।
मौत से पहले 3 दिन कोमा में थीं
28 मार्च को मीना कुमारी को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां वो कोमा में चली गईं। तीन दिन के इलाज के बाद उनकी 31 मार्च 1972 को मौत हो गई। मीना कुमारी की मौत पाकीजा फिल्म के लिए फायदेमंद साबित हुई और लोग उन्हें आखिरी बार देखने थिएटर जाने लगे। कुछ समय बाद फिल्म को ब्लॉकबस्टर घोषित किया गया, लेकिन अफसोस मीना पाकीजा की कामयाबी नहीं देख सकीं।
मीना कुमारी की आखिरी फिल्म सावन कुमार टाक की गोमती के किनारे थी, जो उनकी मौत के बाद रिलीज हुई। सावन, मीना की इतनी इज्जत करते थे कि उन्हें फिल्म में भी मीना नहीं बल्कि मीना जी नाम से क्रेडिट दिया गया था। अफसोस कि मीना ये फिल्म देख नहीं सकीं। मीना की मौत के बाद सावन कई घंटों तक उनकी कब्र के पास बैठकर रोते रहे थे।
कमाल अमरोही की आखिरी ख्वाहिश के अनुसार उन्हें 11 फरवरी 1993 में मीना की कब्र के ठीक बाजू वाली कब्र में दफनाया गया था।